Tuesday, July 28, 2009
पीपल तलै की
साधू का पप्पू खेती तो घणी कर ही रहा है पर अपने आप नै गाम तै घणा ऐ सयाना भी मानै सै। बादलां कानी देख कै रोना सा मुहं कर लिया अर् न्यूँ कहन लग्गा भाई काल पड़ग्या अर इबके मरगे। मनै तो कपास में तीसरे साल की तरह स्प्रे भी चार मार लिए। मारलिए तो के होग्या कपास तेरी सब से टॉप में सै तेरे काल के मांगै - नफे का कृष्ण हँसकै बोल्या। मनै मनबीर की कपास देखते देखते तीन महीने हो लिए। उस नै इब तक एक भी स्प्रे कोनी मारा सै। उस की कपास में हरा तेला, सफेद मक्खी , मिलीबग अर चुरडा खूब हो रहा सै। "खूब कितना?" -नरेंद्र नै डाक्टरी अंदाज में पूछा। कृष्ण बोला, "ब्होत घना।" घन्ना कितना यह तो बात नही बनी। जब तक हम गिनती नही कर लेते हमे पता नही लगेगा कि कितने रस चोसक कीट व् कितने मांसाहारी कीट तथा कितने परजीव्याभ मनबीर कि कपास में मौजूद हैं। डाक्टर सुरेन्द्र दलाल ने हमें बताया था कि यदि कपास में प्रति पत्ता दो हरे तेले , छ सफ़ेद मक्खी, व् दस चुरडे प्रति पत्ता नही मिलते तब तक किसी भी कीटनाशक का स्प्रे करने से हमें नुक्सान ही होगा नकि लाभ। दूसरा हमें अपने खेत में पौधों की संख्या का पता हो जैसे मनबीर के खेत में 2950 पौधे हैं, उनसे प्रति पौधे पर रस चोसक कीटों की औसत संख्या तथा औसत मांसाहारी कीटों की संख्या से गुना करने से कुल रस चोसक कीटों तथा कुल मांसाहारी कीटों की संख्या का पता चल जाता है। मांसाहारी कीटों की प्रति दिन रस चोसक कीटों को खाने की क्षमता का पत्ता होने पर हम जान सकते हैं कि कितने दिन में मांसाहारी कीट रस चोसक कीटों को खा सकते हैं । हमें यह भी देखना चाहिए कितने मिलीबग राजी-बाजी हैं और कितने मिलीबग में अंगीरा के बच्चे पल रहे हैं पप्पू से रहा नही गया, बोला हम के दाई सा जो हमने ये पता चल जाएगा कि कोसा मिलीबग कद किस के बच्चे देगा। नरेंद्र फ़िर उछला युतो जमा ही आसान काम है जिस मिलीबग की कड़ नरसिम्हा राव के सिर जैसी दीखै ओ मिलीबग तो समझो अंगीरा के बच्चो का घर है। पप्पू बोला- आज तो होगी वार। तड़कै जरुर कापी पेन लाऊंगा। मैने भी यु निरिक्षण सिखा दो । इब समझ आई यु मनबीर मेरे तै बचत ज्यादा क्यूकर काढै सै। तड़कै जरुर अइयो -भाइयो मेरा भी भला होज्यागा।
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